Comments (5)
11 Aug 2016 07:55 PM
bahut hee .. umda waah laazwaab, naman aapke lekh lo
Brijpal Singh
Author
12 Jul 2016 02:42 PM
#शुक्रिया आदरणीया निर्मला जी
3 Jul 2016 09:08 AM
एक इन्सान की इन्सानियत भारी सोच मे करुणा दया जो होनी चाहिये वो इस कहानी मे हैऔर इसमे अगर त्याग का पुण्ज मिलाते तो अपनी सैलरी मे से उस बच्ची को खिलौना दिलवा सकते थे1 शायद आज के युग मे ये कहानी अपनी वास्त्विकता खो देती1 बधाइ इस सुन्दर कहानी के लिये1
Brijpal Singh
Author
12 Jul 2016 02:43 PM
#शुक्रिया आदरणीया निर्मला जी
अद्भुत वाहह बेहतरीन