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6 Sep 2016 01:57 PM

अद्भुत वाहह बेहतरीन

11 Aug 2016 07:55 PM

bahut hee .. umda waah laazwaab, naman aapke lekh lo

12 Jul 2016 02:42 PM

#शुक्रिया आदरणीया निर्मला जी

एक इन्सान की इन्सानियत भारी सोच मे करुणा दया जो होनी चाहिये वो इस कहानी मे हैऔर इसमे अगर त्याग का पुण्ज मिलाते तो अपनी सैलरी मे से उस बच्ची को खिलौना दिलवा सकते थे1 शायद आज के युग मे ये कहानी अपनी वास्त्विकता खो देती1 बधाइ इस सुन्दर कहानी के लिये1

12 Jul 2016 02:43 PM

#शुक्रिया आदरणीया निर्मला जी

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