Comments (4)
24 Sep 2022 10:07 AM
वा शानदार ‘रौशनी की आस में, नये अंधेरों में भटक जातीं हैं,और फिर ज़िन्दगी, ज़िन्दगी के नाम से भी ख़ौफ़ खाती है, क्या गजब की कलम इँसा कई बार गुमराह होकर गुमनाम जिने पर मजबूर हो जाता है आपने अंतर्मन को छूनेवाली बात लिखी बहोत उम्दा मनीषा जी 🙏🙏🙏🌹🌹🌹
Manisha Manjari
Author
27 Sep 2022 09:47 PM
बहुत-बहुत आभार शेखर जी 🙏🙏🙏
बहुत ही उम्दा कलम,बेवक़्त रौंदते सपने से जिन्दगी कितनी आहत होती है इसका आपने बहुत सुन्दर चित्रण किया है और जिंदगी के दर्द भरी एहसास को आपने अपनी रचना के जरिए हमें अवगत कराया है।बेहतरीन, लाजवाब, शानदार रचना👌🏻👌🏻👌🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
बहुत बहुत आभार अनामिका जी 🙏🏻🙏🏻🙏🏻