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19 Aug 2022 07:02 PM

पत्थरों में कहाँ इँसानो सा छल कपट..
बने है जरिया ये इँसा की कलाकारी है
दुनिया के छलावे को बहुत हीं पारदर्शिता से बयां करती है आपकी रचना, बेहद लाजवाब 👌👌👌🙏🙏🙏

आपके पीठ थपथपाते बहुमूल्य लफ्ज़ एक नयी ऊर्जा का एहसास भरते है नए सृजन की प्रेरणा जगाते है बहोत बहोत हृदयतल से आभार शुक्रिया धन्यवाद 🙏🙏🙏

19 Aug 2022 01:11 PM

‘दिल की भी कहाँ खुद से वफ़ादारी है’ क्या खूब फरमाया आपने 👌 ….वास्तविक दर्शन🙏🏾🙏🏾
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🙏🙏🙏

No Baba Never Delete agr aisa huva hoga to maaf karna ji 🙏🙏🙏

19 Aug 2022 11:32 AM

बेहतरीन,लाजवाब शानदार रचन👌👌👌पत्थरों में कहाँ इँसानो सा छल कपट..
बने है जरिया ये इँसा की कलाकारी है बहुत ही सुंदर बात कही है👌👌👌👌💐🙏🙏

बहोत बहोत सहृदय से धन्यवाद आभार शुक्रिया 🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹

“दुनिया में कहाँ अब समझदारी है ” बहुत खूब 👌👌

वैष्णवी जी बहोत बहोत धन्यवाद क्या बात है आप कहाँ गुमशुदा हो आपकी कोई रचना पढ़ने को नही मिल रही है🙏🙏🙏

जी कल ही पोस्ट की है 🙏🙏

बहुत खूब !
हक़ीक़त का आईना दिखाती पेशक़श !
“जरासी खामोशी चश्म में उभर आये
तो आईना भी दिखाता होशियारी है ।।”
इसका तफ़सील- ए -बयाँ पेश करें !
आस्थाएं की जगह अक़ीदतें लफ़्ज बेहतर होता।

श़ुक्रिया !

बहुत खूब ! हक़ीक़त से दो चार होना किसी भी शख़्स को जो ख़्वाबों की दुनिया में जीता नाग़वार गुज़रता है !
श़ुक्रिया !

Bhot khub ji 🙏🙏🙏

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