Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
Comments (16)

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
27 Jun 2022 11:51 AM

बहुत ही सुंदर रचना जिसमें व्यंग के साथ प्रेम छुपा है।लड़ाई वही होता है जहा हक होता है।बहुत खूब।

27 Jun 2022 01:07 PM

आपके शब्दों का आभार

26 Jun 2022 09:53 PM

Bhaut achai Kavita hai

26 Jun 2022 10:19 PM

धन्यवाद दीदी

26 Jun 2022 07:43 PM

कुछ अतिशयोक्ति नहीं करते आप पति, पत्नियों को लेकर?

26 Jun 2022 08:05 PM

हास्य, व्यंग्य में थोड़ी बहुत अतिश्योक्ति की गुंजाइश तो रहती है, इस कविता में साझा अनुभव थोड़े व्यक्तिगत भी हैं, इसे हल्के फुल्के तरीके से पेश करने की कोशिश की है। सामान्यीकरण करने का मेरा कोई इरादा भी नहीं है। पर एक पति जब कुछ व्यक्त करता है तो उसे सब पतियों का प्रतिनिधि समझ लिया जाता हैं। आप कृपया इसे अन्यथा न लें, एक व्यक्तिगत सा गुदगुदाता अनुभव समझ लें, जिसमे एक दूसरे पर अधिकार, एक दूसरे की आदतों को स्वीकार करना भी, अंतर्निहित प्रेम का ही रूप है, बस रूमानी सा दिखता नहीं है।

26 Jun 2022 02:31 PM

Beautiful poem. Loved it.

26 Jun 2022 02:51 PM

Thank you

26 Jun 2022 12:46 PM

Beautifully composed ❤️

26 Jun 2022 02:51 PM

Thank you

अति उत्तम और मजेदार

26 Jun 2022 12:15 PM

आपका आभार

26 Jun 2022 11:37 AM

Relatable for every wife. Bahut badhiya

26 Jun 2022 12:16 PM

आपका धन्यवाद

26 Jun 2022 11:28 AM

लाजवाब !!

26 Jun 2022 12:16 PM

आभार

Loading...