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********* दूर सज्जन प्रिय *********
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प्रिय अभिजात, /
आंगन में कोई खाली अटारी नहीं होगी। /

कोई साथ नहीं चल पाएगा /
नदी डूबे हुए तटों को छोड़कर सभी को पार कर गई।/

लम्हा पक्का है, याद नज़रों से ओझल है, /

मेरे ज़ख्मों में नमक मलने की बात करो – डी’ओह! /
प्रकृति के रंग रंगीन और अनोखे हैं। /

सुनिए मनसीरत के पत्ते ही कहते हैं, /
फिर से दौड़कर जितनी दूर हो सके दौड़ें। /
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सुखविंदर सिंह मानसीरता
खेरी राव वाली (कैथल)

वाह वाह! क्या कहने सर जी। ….. सुन्दर पंजाबी रचनाएँ।

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