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अटल हिमालय सी होकर, नदियों सी झर-झर बहकर, त्रास जगत के सारे सहकर। फिर भी हार नहीं मानूंगी—-
तुम ही मेरे हो पथगामी, जीवन की बगिया के,
बहुत सुंदर शब्द है वाह वाह वाह
Nice दी
रार नही ठानूगी यह उचित है , बहुत सुंदर कविता धन्यवाद आपका जी
अटल हिमालय सी होकर,
नदियों सी झर-झर बहकर,
त्रास जगत के सारे सहकर।
फिर भी हार नहीं मानूंगी—-
तुम ही मेरे हो पथगामी,
जीवन की बगिया के,
बहुत सुंदर शब्द है वाह वाह वाह