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ध्यान की मदिरा जिसने भी पी उसके ज्ञान चक्षु खुल गए उसने अंतर्निहित अज्ञान से मुक्ति पाई , जिस सुख ,संतोष , शांति को खोजने वह भटकता फिरा बाहृय जगत में अपने ही अंतःकरण में उनकी स्थिति पाई ,
धन्यवाद ! ?
ध्यान की मदिरा जिसने भी पी उसके ज्ञान चक्षु खुल गए उसने अंतर्निहित अज्ञान से मुक्ति पाई ,
जिस सुख ,संतोष , शांति को खोजने वह भटकता फिरा बाहृय जगत में अपने ही
अंतःकरण में उनकी स्थिति पाई ,
धन्यवाद ! ?