Comments (2)
29 Nov 2021 10:56 AM
तुम्हारे चाहने से कुछ हो नही सकता,
तुम वक्क्त हो नियति नही हो…!
तुम्हारे जुल्मों को झेलना मुझको आ गया है,
क्योकि ये नियति नही मेरी बफा का इम्तिहान है.!
तुम्हारे चाहने से कुछ हो नही सकता,
तुम वक्क्त हो नियति नही हो…!
तुम्हारे जुल्मों को झेलना मुझको आ गया है,
क्योकि ये नियति नही मेरी बफा का इम्तिहान है.!
ग़र अपने नफरत की आग से मेरी हस्ती जलाकर राख भी कर दो, उस खाक में एक चिंगारी छुपी सुलगती रहेगी , वक्त की करवट से शोला बन उभरेगी और ज़ुल्मो सितम को नेस्त़नाबूद कर देगी ,
श़ुक्रिया !