है शायद स्वार्थी जीवन “सबका”
शायद ये बेहतर तब हो जाता !
जब सबका की जगह होता “कुछ लोगों का”!
क्योंकि सभी लोग ऐसे नहीं होते…. कुछ तो अच्छे ज़रूर होते, जो सचमुच भक्ति भाव में लीन होते ! इसीलिए सबकी आस्था पे सवाल करना ठीक नहीं…. रचना का बाकी भाग सुंदर संदेश से सुसज्जित है !!
है शायद स्वार्थी जीवन “सबका”
शायद ये बेहतर तब हो जाता !
जब सबका की जगह होता “कुछ लोगों का”!
क्योंकि सभी लोग ऐसे नहीं होते…. कुछ तो अच्छे ज़रूर होते, जो सचमुच भक्ति भाव में लीन होते ! इसीलिए सबकी आस्था पे सवाल करना ठीक नहीं…. रचना का बाकी भाग सुंदर संदेश से सुसज्जित है !!
धन्यवाद ।
मेरी कलम से जो लिखा गया जरूर उसमें सत्यता होगी।
हम चित्रगुप्त के वंशज हैं।
ऐसे कुछ नही लिख देते।