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जमाने ने मारे जवां कैसे कैसे ,
ज़मीं खा गई आसमां कैसे कैसे ,
पले थे जो कल रंग में फूल में ,
कहीं खो गए राह की धूल में ,
हुए दर-बदर कारवां कैसे-कैसे ,
हजारों के तन जैसे शीशे हों चूर ,
जला धूप में कितनी आंखों का नूर ,
हैं चेहरे पर गम के निशां कैसे कैसे ,

श़ुक्रिया !

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