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अब तक बदग़ुमा था अपनी असलियत से , सराब -ए – आप में खोया था परे हक़ीक़त से , सहर उम्मीद की लगता था जमाने के लिए , अजाब -ए-शाम -ए-तमन्ना था फ़क्त फ़साने के लिए ,
श़ुक्रिया !
?❤️?
अब तक बदग़ुमा था अपनी असलियत से ,
सराब -ए – आप में खोया था परे हक़ीक़त से ,
सहर उम्मीद की लगता था जमाने के लिए ,
अजाब -ए-शाम -ए-तमन्ना था फ़क्त फ़साने के लिए ,
श़ुक्रिया !
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