Comments (6)
23 Oct 2021 07:54 PM
वर्तमान विरोधाभास की त्रासदी पर भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति !
धन्यवाद !
23 Oct 2021 08:30 PM
प्रणाम सर
23 Oct 2021 01:28 PM
बहुत सुंदर प्रशांत जी ,यह ,समय समय की बात है।समय सदा एक सा नहीं रहता है।
23 Oct 2021 08:30 PM
प्रणाम से
रावण को यहां राम नाम जपते देखा,
फिर भी कर्म से रावण को रावण ही पाया।
हर एक सीता की आंख में आंसू देखा,
फिर भी मैंने सीता को सीता ही पाया।
✨✨✨✨✨✨✨✨✨
आपने सुंदर शब्दों से अलंकृत रचना प्रस्तुत की है।
धन्यवाद मैडम जी।
आपने भी बहुत अच्छा लिखा है…!!