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बेटी को बांटकर हमने बहु और बेटी के खांचे में डाल दिया,अन्यथा एक बेटी विदा कर एक दूसरे घर की लाडली को बहु तक सीमित रख दिया गया, बेटी नहीं बना पाए, कहीं कुछ कमी तो नहीं रह गई है दोनों छोर से? सोचनीय विषय है पर आग्रही नहीं।
अत्यंत मार्मिक रचना
बहुत ही मार्मिक रचना
बेटी को बांटकर हमने बहु और बेटी के खांचे में डाल दिया,अन्यथा एक बेटी विदा कर एक दूसरे घर की लाडली को बहु तक सीमित रख दिया गया, बेटी नहीं बना पाए, कहीं कुछ कमी तो नहीं रह गई है दोनों छोर से? सोचनीय विषय है पर आग्रही नहीं।