कालांतर में शिक्षा का स्वरूप ज्ञान एवं संस्कारों के पोषण के अतिरिक्त व्यवसाय एवं आजीविका का साधन बन गया है। शिक्षक की ज्ञान प्रसार एवं अपने शिष्यों के बौद्धिक विकास एवं संस्कारों के पोषण की प्रतिबद्धता में कमी आई है। जिसका प्रमुख कारण लोकतंत्र में व्याप्त राजनैतिक मूल्यों के चलते शिक्षा नीति में समय-समय पर होते रहे परिवर्तन हैं। शिक्षण को श्रेष्ठतम कर्म के स्थान पर व्यवसाय एवं आजीविका निर्वाह का साधन बना दिया गया है। इसी तरह शिक्षा आजीविका कमाने का साधन बन चुकी है।
यह एक कटु सत्य है।
अतः हमें इस विषय में व्यवहारिकता के परिपेक्ष्य में आकलन करना चाहिए। केवल शिक्षा नीति में परिवर्तन करने से जनसाधारण की मानसिकता में परिवर्तन अल्पकाल में नहीं आ सकता , हां यह अवश्य है; कि इसका दूरगामी प्रभाव भविष्य की पीढ़ी पर पड़ सकता है। इस विषय में मेरे आलेख शिक्षा एवं आजीविका दिनांक 12 अप्रैल 2021 का अवलोकन करें।
धन्यवाद !
कालांतर में शिक्षा का स्वरूप ज्ञान एवं संस्कारों के पोषण के अतिरिक्त व्यवसाय एवं आजीविका का साधन बन गया है। शिक्षक की ज्ञान प्रसार एवं अपने शिष्यों के बौद्धिक विकास एवं संस्कारों के पोषण की प्रतिबद्धता में कमी आई है। जिसका प्रमुख कारण लोकतंत्र में व्याप्त राजनैतिक मूल्यों के चलते शिक्षा नीति में समय-समय पर होते रहे परिवर्तन हैं। शिक्षण को श्रेष्ठतम कर्म के स्थान पर व्यवसाय एवं आजीविका निर्वाह का साधन बना दिया गया है। इसी तरह शिक्षा आजीविका कमाने का साधन बन चुकी है।
यह एक कटु सत्य है।
अतः हमें इस विषय में व्यवहारिकता के परिपेक्ष्य में आकलन करना चाहिए। केवल शिक्षा नीति में परिवर्तन करने से जनसाधारण की मानसिकता में परिवर्तन अल्पकाल में नहीं आ सकता , हां यह अवश्य है; कि इसका दूरगामी प्रभाव भविष्य की पीढ़ी पर पड़ सकता है। इस विषय में मेरे आलेख शिक्षा एवं आजीविका दिनांक 12 अप्रैल 2021 का अवलोकन करें।
धन्यवाद !
हार्दिक आभार