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तर्क के लिए ज्ञान एवं प्रज्ञा शक्ति का विकसित होना आवश्यक है।
अर्ध ज्ञान एवं अहम कुतर्क की मानसिकता को बढ़ावा देते हैं जो निष्कर्ष लेने की प्रक्रिया को जटिल बना देते है।
समस्याओं के निराकरण एवं निर्णय की कसौटी पर ज्ञान एवं प्रखर प्रज्ञा शक्ति के अतिरिक्त व्यवहारिकता का भी महत्व होता है। जिससे कार्य निष्पादन के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का सामना करते हुए सुचारू रूप से कार्य संपन्न किया जा सके एवं समय रहते संयोजन की त्रुटियों को दूर किया जा सके।
धन्यवाद !

सही कहा सर आपने

बहुत उम्दा विवेचन ,सुंदर रचना

Thanks sir

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