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सटीक विश्लेषण के बहुत श्याम सुंदर सुब्रमण्यम सर

सामाजिक परिपेक्ष में आए दिन जाति धर्म के नाम से इस वर्ग के लोगों पर अत्याचार एवं शोषण होता रहता है। और देश के चुने हुए प्रतिनिधि एवं बुद्धिजीवी मूकदर्शक बने इन सब अत्याचारों को सहन करने के लिए उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं।
जातिवाद एवं धर्मांधता देश की जनता में विष
की तरह फैल कर देश में सांप्रदायिक एवं जातिगत सौहार्द को नष्ट कर रहा है।
राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए हमें गंभीरता से इस विषय में मनन करना आवश्यक है।
सर्वप्रथम हमें इसके मूल में जातिगत वैमनस्य एवं द्वेष की भावना को नष्ट कर मानवीय मूल्यों के आधार पर सामाजिक सौहार्द्र स्थापना करने के प्रयास करने होंगे। तभी हम मानवता पर आधारित धर्मनिरपेक्ष सहअस्तित्व की राष्ट्रीयता की भावना स्थापित करने के लिए सक्षम हो सकेंगे।
धन्यवाद !

वर्तमान सामाजिक विसंगति के कटु यथार्थ की संदेश पूर्ण प्रस्तुति।
दरअसल हमारे देश में अनुसूचित जाति ,जनजाति एवं दलितों के उत्थान की भावना को राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए मोहरा बनाकर उनका उपयोग किया जाता है। जिसमें नौकरियों के आरक्षण , शिक्षा सुविधाओं एवं अन्य कल्याणकारी संदेशों का समावेश होता है। वास्तविकता में इन सभी प्रयासों का लाभ इस वर्ग के संपन्न ,रसूखदार एवं राजनैतिक पैठ रखने वाले लोगों को होता है।
जबकि इस वर्ग की गरीब एवं शोषित निम्न वर्ग की जनता इन सभी लाभों से वंचित रहती है , जिसके फलस्वरूप इनकी दशा बद से बदतर हो रही है ।
चुनावों में झूठे वादे चुनावी घोषणा में इस तबके को वरगलाकर वोट बैंक की राजनीति का आधार बनते हैं । इस वर्ग के तथाकथित प्रतिनिधि चुनाव के पश्चात अपनी चुनावी घोषणा का परिपालन नहीं करते हैं। इस प्रकार इस वर्ग की स्थिति में कोई सुधार नहीं होता।

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