पुरूषों को नारी के प्रति जीवन में सदैव शालीनता से पेश आना चाहिए । कभी उनके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए। क्योंकि नारी है तभी तो पुरूषों का अस्तित्व है। मातृभूमि एवं नारी जननी स्वरूप होती हैं। ये उपकार पुरूषों को कभी नहीं भूलना चाहिए। नारी का मन जब क्रोधित हो जाएगा तो पुरुषों का वजूद ही ख़तरे में पड़ सकता है। और जब किसी नारी का मन एक बार दुखित किसी कारणवश हो जाता तो उसकी भरपाई चन्द मुआवजों एवं संवेदनाओं से कदापि नहीं की जा सकती ! इसीलिए पुरुषों को सदैव नारी के प्रति लचीले रुख़ का परिचय देते हुए उसकी मजबूरी को समझते हुए सदाचरण का परिचय देते हुए ही
कोई आचार-व्यवहार स्थापित करना चाहिए । इसी में सबकी भलाई है। जो हो गया सो हो गया, जीवन से इतना क्षुब्ध एवं निराश न हों, ज़िंदगी बहुत बड़ी होती है और उसे चन्द घटक
अपने काली करतूतों से कुछ क्षण हेतु थोड़ा परेशान तो कर सकते हैं पर ज़िंदगी की गति पर पूर्णतः लगाम नहीं लगा सकते ! ज़िंदगी से अब भी काफ़ी उम्मीदें की जा सकती…. आज के परिवेश में, परिस्थिति में नए सिरे से सोचकर देखें…. बहुत अच्छी रचना सृजित करती हैं आप और उसी कड़ी में ये रचना भी आपकी बेहतरीन प्रस्तुति है ! आपको ढ़ेर सारी शुभकामनाएं…. ???
श्रीमान,
ज़िंदगी की उम्मीदे भी दोनों के मिलकर साथ आगे बढ़ने से पूरी होंगी। हिंसा, द्वेष को छोड़कर मानवता और सद्भावना का दृष्टिकोण ही आने वाले भविष्य की सुखमय कल्पनाएँ दे सकेगा । ?
पुरूषों को नारी के प्रति जीवन में सदैव शालीनता से पेश आना चाहिए । कभी उनके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए। क्योंकि नारी है तभी तो पुरूषों का अस्तित्व है। मातृभूमि एवं नारी जननी स्वरूप होती हैं। ये उपकार पुरूषों को कभी नहीं भूलना चाहिए। नारी का मन जब क्रोधित हो जाएगा तो पुरुषों का वजूद ही ख़तरे में पड़ सकता है। और जब किसी नारी का मन एक बार दुखित किसी कारणवश हो जाता तो उसकी भरपाई चन्द मुआवजों एवं संवेदनाओं से कदापि नहीं की जा सकती ! इसीलिए पुरुषों को सदैव नारी के प्रति लचीले रुख़ का परिचय देते हुए उसकी मजबूरी को समझते हुए सदाचरण का परिचय देते हुए ही
कोई आचार-व्यवहार स्थापित करना चाहिए । इसी में सबकी भलाई है। जो हो गया सो हो गया, जीवन से इतना क्षुब्ध एवं निराश न हों, ज़िंदगी बहुत बड़ी होती है और उसे चन्द घटक
अपने काली करतूतों से कुछ क्षण हेतु थोड़ा परेशान तो कर सकते हैं पर ज़िंदगी की गति पर पूर्णतः लगाम नहीं लगा सकते ! ज़िंदगी से अब भी काफ़ी उम्मीदें की जा सकती…. आज के परिवेश में, परिस्थिति में नए सिरे से सोचकर देखें…. बहुत अच्छी रचना सृजित करती हैं आप और उसी कड़ी में ये रचना भी आपकी बेहतरीन प्रस्तुति है ! आपको ढ़ेर सारी शुभकामनाएं…. ???
श्रीमान,
ज़िंदगी की उम्मीदे भी दोनों के मिलकर साथ आगे बढ़ने से पूरी होंगी। हिंसा, द्वेष को छोड़कर मानवता और सद्भावना का दृष्टिकोण ही आने वाले भविष्य की सुखमय कल्पनाएँ दे सकेगा । ?