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अनु जी सादर नमस्कार, आपने प्रस्तुत रचना में मानवीय संवेदनाओं को अभिव्यक्त किए हैं, कल ही हमारे क्षेत्र में एक घटना घटित हुआ एक व्यक्ति को उनके मित्रों ने ही गैंती, तब्बल आदि औजारों से लहू-लुहान कर दिया, वहीं पास में खड़े लोग विडियो क्लिप बनाना शुरु किया किसी ने मदद की हाथ आगे नहीं बढ़ाया, सभी मूकदर्शक बने रहे, एक व्यक्ति ने तुरंत पुलिस को फ़ोन किया तब तक वह घायल अवस्था में कराह रहा था। पुलिस के पहुँचने के बाद पुलिस ने घायल अवस्था को व्यक्ति को इलाज के लिए तुरंत अस्पताल पहुंचाया। वहीं इस घटना के वीडियो बनाने वाले लोग व्हाट एप पर भेजने लगे। मैनें मन से पूछा क्या यही मानवता है? मैं इसे कविता के रुप लिखना चाहता था, लेकिन यह घटना आपके कविता से जुड़ा है, इसलिए मैंने अपनी कलम रोक दिया, संभवतः मैं इसे लिखता तो वह चोरी के मापदंड में आता इसीलिए मेरा कलम रुक सा गया।

धन्यवाद जी ।

मेरा मानना है की कोई किसी की चोरी नहीं कर सकता । और यदि रचनाकार आप जैसा स्वयं कुशल हो ,वो तो बिल्कुल नहीं चाहेगा।ऐसा करना। क्योंकि कोई कितनी। भी कोशिश की ।उसका अपना प्रभाव कविता पर आ ही जाता है। सबका अपना अपना अंदाज होता है । आप बेशक लिखिए ,बेझिझक लिखिए।हम आपके नजरिए से घटना क्रम का दृश्य का अवलोकन करना चाहेंगे ।

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