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7 Aug 2021 01:02 AM

बहुत सुंदर संस्मरण है। ना चाहते हुए भी मित्र उसे बनाना ही पड़ा और वो मानस पटल पर आपके छा ही गया। अब उसकी तरह ही आप भी वर्तमान में जीना सीखें। उन बीती हुई बातों को उस बीते पल के वर्तमान में ही छोड़ दें। और
वर्तमान में नए मित्रों का साथ दें। हो सकता है कि उससे भी अच्छा मित्र जो आपके मन-मस्तिष्क पे छा जाए ! हृदय स्पर्शी व शानदार प्रस्तुति ! ??

8 Aug 2021 01:47 PM

जी कुछ चरित्र भुलाए नहीं भूलते वास्तव में मैंने उसे उस वक्त मित्र माना ही नहीं ।मैं तो पीछा छुड़ाना चाहती थी उससे।कभी कभी किसी के व्यवहार को हम गलत समझ लेते हैं। लेकिन बाद में मुझे एहसास हुआ वो साफ दिल था। इसीलिए आज भी याद है।

8 Aug 2021 02:26 PM

मैं नहीं मानता कि वो बहुत साफ दिल इंसान था ! अगर ऐसा था तो वो आपको ट्रेन के स्टेशन में रुकने पर खाने के लिए अपने साथ ट्रेन से बाहर उतरने की सलाह नहीं देता ! वो तो सुरक्षित रहीं आप अपनी सतर्कता पर जो आप उसके बहकावे में आकर नीचे नहीं उतरी अन्यथा आपका सारा सामान गायब हो सकता था या कुछ और ही घटना हो सकती थी। वैसे ट्रेन पर कभी किसी का कुछ भी खाना ख़तरनाक साबित हो सकता था ! प्रायः लोग दोस्ती की आड़ में ही खाने-पीने की चीजों में ही कुछ मिलाकर सारा सामान लूट लेते हैं। एक बात और है कि हर सफ़र में उसे दोस्ती करने के लिए फ्री दोस्त मिल कैसे जाता था ! जो उसकी तथाकथित डायरी में दोस्तों की लम्बी फेहरिस्त थी। इसीलिए कुछ कहना मुश्किल है। ट्रेन में किसी अनजान दोस्तों को खाने-पीने की सामान शेयर करने के लिए provoke करना भी अच्छे गुण नहीं कहे जा सकते ! हो सकता है कि उसके मन में कुछ और हो जिसका मौका उसे नहीं मिल पाया हो ! इसीलिए उसे क्लीन चिट देना मुनासिब नहीं। संशय तो अब भी बरक़रार है Godambari ji. बहुत बहुत शुक्रिया ! इसे अन्यथा ना लें ! एक दोस्त की भांति ही विमर्श कर रहा हूॅं !!!

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