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अब तो हर शहर में मोहब्बत का नाम नहीं।
बैठे हैं हवस जिस्म की लिए दिल से काम नहीं।

ओ ‘मुसाफिर’ जमाना जलता सच्चे दीवानों से,
नफ़रत के घोल है कहीं इश्क का जाम नहीं।।

25 Feb 2024 02:53 PM

Shi kha

5 Aug 2021 12:45 AM

मोहब्बत चीज़ ही ऐसी है जो प्रायः ज़ख़्म देती है ! हर किसी को कभी-न-कभी ये वहम होती है !
कभी कभी तो न जाने कितने सितम ये ढाती है !
और कभी ख्वाबों की दुनिया में सुखद सा एहसास दिलाती है !! अक्सर ऐसा ही होता है जैसा आपने खूबसूरती से लिखी है !!

25 Feb 2024 02:54 PM

Jiiii

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