Comments (8)
20 Jul 2021 06:36 PM
अति उत्तम
यथार्थ
ओनिका सेतिया 'अनु '
Author
20 Jul 2021 06:45 PM
धन्यवाद जी
20 Jul 2021 04:37 PM
जीव मात्र पर चिंतन
ओनिका सेतिया 'अनु '
Author
20 Jul 2021 05:51 PM
धन्यवाद जी
20 Jul 2021 03:19 PM
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ओनिका सेतिया 'अनु '
Author
20 Jul 2021 04:18 PM
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“अनु जी” अभी तो परिंदे, मनुष्य से अपना दर्द व्यक्त कर रहें हैं, उन परिंदों को यह मालूम नहीं है कि मनुष्य उस मकड़ी की तरह है, जो स्वयं के बनाए जाल में फंस कर उलझता जाता है, और उलझता जा रहा है। हर मनुष्य रोज दवा खा रहा है।
आपकी यह रचना बहुत ही अच्छा है, धन्यवाद।
धन्यवाद जी