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कुछ तुम्हारी बंदिशे थीं , कुछ थे मेरे दायरे , जब मुकद्दर ही बने दुश्मन तो कोई क्या करें , इस मुक़द्दर पर है किसी का क्या है आखिर इख़्तियार , मेरे दिल में बनकर रह गया है यादगार तुम्हारा प्यार , श़ुक्रिया !
बहुत सुंदर
कुछ तुम्हारी बंदिशे थीं , कुछ थे मेरे दायरे ,
जब मुकद्दर ही बने दुश्मन तो कोई क्या करें ,
इस मुक़द्दर पर है किसी का क्या है आखिर इख़्तियार ,
मेरे दिल में बनकर रह गया है यादगार तुम्हारा प्यार ,
श़ुक्रिया !
बहुत सुंदर