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4 Jun 2021 06:38 PM
सकारात्मकता आत्म संतोष की जननी है , जबकि नकारात्मकता निराशा एवं अवसाद की ओर ले जाती है। मनुष्य के जीवन में सकारात्मक भाव आत्मविश्वास को प्रेरित करते हैं , एवं उसे सफलता के पथ पर कर्मनिष्ठ बनाते हैं। उसमें साहस एवं धैर्य का संचार करते हैं।
समस्याओं एवं विपत्तियों से संघर्ष करने का आत्म बल प्रदान करते हैं। असफलता की स्थिति में अवसाद एवं हीन भाव के स्थान पर आत्म चिंतन उत्प्रेरित कर नवसंचरित ऊर्जा से सतत प्रयत्नशील रहने की प्रेरणा देते हैं।
धन्यवाद !
सकारात्मकता पर आपकी दृष्टि स्पस्ट है,यह आपकी टिप्पणी से परिलक्षित हो गई है,मैने इसे उन लोगों की ओर से व्यक्त करने की कोशिश की है जो सफल असफल होने के बाद भी उस प्रक्रिया से स्वंय को पृथक नही कर लेते,और अपने प्रयास लगातार जारी रखते हैं फिर भी मन के एक कोने में यह आसंका बनी रहती है कि पता नही कामयाबी मिले भी! तब भी अपने कर्म को त्यागता नही है!मैं कहां तक सही हूं,स्वंय नही जानता!सादर अभिवादन सहित।