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गर्दिश- ए- दौराँ की तन्हाईयों में,
तेरी यादों के ये अब्र -ए – रवाँ ,
दिल के जख्म़ और गहराते हैं ,
गुज़रे वो लम्ह़े एक टीस सी छोड़ जाते हैं ,

जिसे हम समझते हैं हक़ीक़त में प्यार अपना वो फ़साना बन जाते हैं ,
जिन्हे हम समझते दिलबर अपना वो रक़ीब के यार बन जाते हैं ,
श़ुक्रिया !

3 Jun 2021 08:49 AM

बहुत खूब कहा आपने

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