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सुयोग्य समझकर ही विवाह की रस्में पूरी की जाती है। आज के युग में अपवाद तो हर क्षेत्र में व्याप्त है। पर मूल अवधारणा का जिक्र ही मैंने किया है। धन्यवाद।
सुयोग्य क्या, अयोग्य भी दहेज के चक्कर मे हाथ थामते।
सुयोग्य समझकर ही विवाह की रस्में पूरी की जाती है।
आज के युग में अपवाद तो हर क्षेत्र में व्याप्त है। पर मूल अवधारणा का जिक्र ही मैंने किया है। धन्यवाद।