ईश्वर वह आशा की किरण है , जो हमें जीवित रहने की प्रेरणा एवं ऊर्जा देती है ।
कोई भी जीवन केवल एक व्यक्ति का नहीं होता, वह उन समस्त व्यक्तियों प्रभावित करता है ,जो उसके सानिध्य में अपना जीवन उसको समर्पित करते हैं।
जो जीवन बंधन से मुक्त हुआ वह मोक्ष को प्राप्त होता है , उसे परम गति प्राप्त होती है।
जो इस जीवन बंधन से मुक्त नहीं हुआ उसका पुनर्जन्म जीवन भोगने के लिए होता है।
जीवन से आसक्ति का यह चक्र जन्म जन्मांतर तक आत्मा को भोगना पड़ता है , जब तक आत्मा इस आसक्ति से विमुक्त हो परम गति को प्राप्त नहीं होती है।
धर्म एक अनुशासन है जो मानव को अनुशासित जीवन निर्वाह करने के लिये प्रेरित करता है। अनुशासन बिना मानव जीवन पशुवत् होकर रह जाएगा। अतः धर्म का महत्व अपने स्थान पर है , जिसे नकारा नहीं जा सकता है।
आप धर्म को किस तरह मानते हैं यह सब व्यक्तिगत दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।
मैं किसी भी व्यक्ति को पूर्ण आस्तिक या पूर्ण नास्तिक नहीं मानता। समय-समय पर यह अंतर्द्वंद मनुष्य के मस्तिष्क मे चलता रहता है।
जो विभिन्न परिस्थितियों में उसके अंतर्मन की उद्वेलित भावनाओं का परिणाम होता है।
जिस से प्रभावित होकर वह इस प्रकार सोच का निर्माण करने के लिए बाध्य होता है।
धन्यवाद !
सृष्टि के कुछ आयाम ऐसे हैं , जिनका वैज्ञानिक तर्कसंगत विश्लेषण करना असंभव है , परंतु सृष्टि में उनकी अनुभूति से नकारना भी एक तरफा दृष्टिकोण है। अभी तक हमें पदार्थ के तीन आयामों का पता था। परंतु अब चतुर्थ आयाम का पता चला है जिसका वैज्ञानिक प्रमाण खोजा जा चुका है। विज्ञान में खोज के अनेक संभावनाएं हैं , जिसके लिए सतत प्रयत्न वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे हैं । परा विज्ञान क्षेत्र में अभी अनुसंधान किए जा रहे हैं और हमें सृष्टि में विभिन्न शक्तियों के अस्तित्व का प्रमाण मिलता है। सौरमंडल में ग्रहों एवं तारामंडल की स्तिथियों के विभिन्न आयामों का पता चला है।
यह सत्य है कि कोई परम शक्ति इस संपूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करती है। जिसे हम ईश्वर के नाम से परिभाषित करते हैं। हमें विस्तृत दृष्टिकोण से इस संदर्भ में विवेचना करना आवश्यक है।
धन्यवाद !
बिग बैंग से लेकर आज तक ,गुरुत्वाकर्षण से लेकर नाभिकीय बल तक, जितना खोजा गया वहीं पर विज्ञान के ज्ञात सूत्र ही मिलते रहे हैं किंतु कोई चमत्कार नही मिला। जो पहले चमत्कार थे वो आज विज्ञान हो गए हैं।
परमशक्ति जरूर है किंतु वह पूजा करने पर ,आरती करने पर,नमाज पढ़ने पर या व्रत रखने पर उसकी अनुभूति नही होगी बल्कि उसकी अनुभूति प्रयोगशालाओं में ही सम्भव है।
जिस प्रकार कोई बड़ी मशीन का पुर्जे एकदूसरे को नियंत्रित करते है उसी प्रकार ज्ञात श्रष्टि भी एक बड़ी मशीन के समान है जिसके कल पुर्जे सूरज,चांद, सितारे और मन्दाकिनी है।
हाँ यह कह सकते है कि श्रष्टि को बनने से पहले क्या था..?
मेरे हिसाब से इसका उत्तर होगा, वही था जो मुर्गी से अंडा या अंडा से मुर्गी बनने से पहले था।
धन्यवाद सर ,आप इसे मेरा विरोध ना समझे ।
आस्था एक धार्मिक विश्वास है, व्यक्ति अपने किये गये कर्मों का दायित्व स्वयं न लेकर ईश्वर को समर्पित कर देता है,अन्यथा अहंकारी कहलाता है। अच्छा लेख
धन्यवाद सर
धन्यवाद सर
अच्छा विश्लेषण है ।
सार्वभौमिक आस्तिक