Comments (4)
17 Mar 2021 04:19 PM
होठों पे हंसी ; पांव में छाले लेकर हम चलते रहे राहे ज़ीस्त के सफ़र में , वक्त गुज़रते ज़िंदगी उलझन बनती गई ,कश्म़कश़ के इस दौर में ये एहसास जगा गई , क्यूं ना ये ज़िंदगी जो अब तक जी औरों की खातिर अपने लिए भी जी लें , इस ज़ीस्त के सफ़र में चंद खुश़गवार पल अपने लिए निकालने की गुस्ताख़ी कर लें , श़ुक्रिया !
jyoti jwala
Author
17 Mar 2021 08:41 PM
thank you sir?
बहुत सुंदर प्रस्तुति धन्यवाद आपका जी
धन्यवाद ?