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ज़िंदगी हम इसी कश़मकश़ में गुज़ारते रहे , तुम्हें समझने की कोशिश में खुद को ना समझ पाए , आगे बढ़कर पीछे लौटना हमारी फ़ितरत में ना था , वो ही मय़स्सर था हमें जो हमारे मुक़द्दर में लिखा था , श़ुक्रिया !
आभार आदरणीय प्रणाम।
ज़िंदगी हम इसी कश़मकश़ में गुज़ारते रहे ,
तुम्हें समझने की कोशिश में खुद को ना समझ पाए ,
आगे बढ़कर पीछे लौटना हमारी फ़ितरत में ना था ,
वो ही मय़स्सर था हमें जो हमारे मुक़द्दर में लिखा था ,
श़ुक्रिया !
आभार आदरणीय प्रणाम।