Comments (4)
21 Feb 2021 08:12 PM
वक्त के दिन और रात , वक्त के कल और आज , वक्त की हर शै गुलाम , वक्त का हर शै पे राज ,
आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे , कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिज़ाज़ ,
श़ुक्रिया !
Abha Singh
Author
22 Feb 2021 02:51 PM
जी बहुत सुन्दर कहा आपने।हार्दिक धन्यवाद।
बहुत ही सुंदर कविता लिखा है.आपने दीदी जी.?
हार्दिक आभार भाई