अनिल जी, आपने वर्तमान परिवेश में लोगों के साथ अपनी संवेदना को जोड़ने में हिचकिचाहट का अहसास कराया है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि लोगों ने जन सरोकारों से मुंह मोड़ लिया हो, हां चाहे इस समय हालात इस कदर प्रतिकूल हैं कि लोग दोहरी भूमिका में अपने को सक्षम नहीं पाते, फिर भी अभी ऐसी स्थिति का निर्माण नहीं हुआ है कि कोई परेशानी में तड़प रहा हो और सामान्य मानवीय संवेदनाओं को जीने वाले उसके साथ कदम ताल करने से बच कर भाग नहीं जाते, अपितु उसकी हर संभव मदद करने की कोशिश करते दिखाई देते हैं! फिर भी आप के अनुभव मुझसे पृथक भी हो सकते हैं, इस लिए असहमति व्यक्त करने के लिए क्षमा चाहता हूं।सादर नमस्कार।
अनिल जी, आपने वर्तमान परिवेश में लोगों के साथ अपनी संवेदना को जोड़ने में हिचकिचाहट का अहसास कराया है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि लोगों ने जन सरोकारों से मुंह मोड़ लिया हो, हां चाहे इस समय हालात इस कदर प्रतिकूल हैं कि लोग दोहरी भूमिका में अपने को सक्षम नहीं पाते, फिर भी अभी ऐसी स्थिति का निर्माण नहीं हुआ है कि कोई परेशानी में तड़प रहा हो और सामान्य मानवीय संवेदनाओं को जीने वाले उसके साथ कदम ताल करने से बच कर भाग नहीं जाते, अपितु उसकी हर संभव मदद करने की कोशिश करते दिखाई देते हैं! फिर भी आप के अनुभव मुझसे पृथक भी हो सकते हैं, इस लिए असहमति व्यक्त करने के लिए क्षमा चाहता हूं।सादर नमस्कार।
आपकी सोच से मैं सहमत हूँ किन्तु यह भी सत्य है कि बहुत कम लोग इतनी हिम्मत जुटा पाते हैं.
आपने अपना अनुभव साझा किया उसके लिए आपका आभार.