Comments (3)
13 Jan 2021 06:36 PM
कुछ तुम्हारी बंदिशेंं थींं , कुछ थे मेरे दायरे,
जब मुकद्दर ही बने दुश्मन तो कोई क्या करे ,
इस मुक़द्दर पर है किसी का क्या है आखिर इख़्तियार ,
ज़िंदगी भर सालता रहेगा दिल में मुझको तेरा प्यार ,
श़ुक्रिया !
13 Jan 2021 04:42 PM
बहुत सुन्दर रचना शोभित जी..
?? शुभकामनाएँ
मेरी रचना “कोरोना बनाम सिंह क्यों रोना” का भी अवलोकन करके अपना बहुमूल्य वोट देकर अनुगृहित करें ?
बेहतरीन ग़ज़ल, रँजन जी..! आपसे विनम्र अनुरोध है कि मेरी रचना “कोरोना को तो हरगिज़ है अब ख़त्म होना ” पर भी दृष्टिपात करने की कृपा करें एवं यदि रचना पसन्द आए तो कृपया वोट देकर कृतार्थ करें..!
साभार..!???