Comments (3)
11 Jan 2021 08:11 PM
अतिसुंदर !
मुझे निष्पंद जड़ न समझो , मेरे अंतः में अभी भी वह चिंगारी निहित है ,
भड़केगी जब वह ज्वाला बन दावानल कर देगी खाक पाप जगत में ,
धन्यवाद !
अतिसुंदर !
मुझे निष्पंद जड़ न समझो , मेरे अंतः में अभी भी वह चिंगारी निहित है ,
भड़केगी जब वह ज्वाला बन दावानल कर देगी खाक पाप जगत में ,
धन्यवाद !
उत्तम रचना जी. आप मेरी रचना ‘मौसम ने ली अंगड़ाई’ पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य साझा करें जी.