अतिसुंदर भावपूर्ण आदिवासियों की व्यथा प्रस्तुति !
धन्यवाद !
धनयवाद
आदरणीय व्यास जी प्रणाम! प्रतियोगिता में मेरी रचना **नाम मिला जिसे को रोना **अवश्य पढ़ें और अच्छी लगे तो प्रतिक्रिया स्वरुप अपना अमूल्य वोट प्रदान करें। धन्यवाद।
धन्यवाद जी, जरूर
वाह , ज़मीन से जुड़ी कृति । बहुत सुंदर। बधाई।
धन्यवाद जी
अत्यन्त प्रभावशाली एवं सन्देशपूर्ण रचना, अरविन्द जी..! आपसे विनम्र अनुरोध है कि मेरी रचना “कोरोना को तो हरगिज़ है अब ख़त्म होना “, जो कि काव्य प्रतियोगिता मेँ भाग ले रही है, पर भी दृष्टिपात करने की कृपा करें एवं यदि रचना पसन्द आए तो कृपया वोट देकर कृतार्थ करें..! साभार..!???
धन्यवाद जी, जरूर
प्रकृति के वासी, हम आदिवासी,
प्रथम पंक्ति से अंतिम पंक्ति तक आदरणीय व्यास जी आपने कविता को जिन शब्दों में समेटा प्रशंसनीय हैं!! बहुत-बहुत धन्यवाद सर जी! आशा करते हैं हमारी रचनाओं का भी अवलोकन करेंगे एक बार पुनः प्रणाम।
धन्यवाद जी … जरूर
अति सुन्दर कविता अरविन्द व्यास जी.. शुभकामनाएं ? कृप्या मेरी कविता “कोरोना बनाम क्यूँ रोना”का अवलोकन करें और अपना बहुमूल्य वोट देकर अनुगृहित करें ??
धन्यवाद जी ,, जरूर
प्रकृति के आंचल में रहने का प्रेम भाव एवं उसके प्रति बरती जा रही उदासीनता एवं उपेक्षा को दर्शाती है यह रचना।सच को सबके सम्मुख प्रस्तुत किया गया है। सादर अभिवादन श्रीमान।
धन्यवाद जी