अत्यन्त प्रभावशाली एवं सन्देशपूर्ण रचना, मधुसूदन जी..! आपसे विनम्र अनुरोध है कि मेरी रचना “कोरोना को तो हरगिज़ है अब ख़त्म होना “, जो कि काव्य प्रतियोगिता मेँ भाग ले रही है, पर भी दृष्टिपात करने की कृपा करें एवं यदि रचना पसन्द आए तो कृपया वोट देकर कृतार्थ करें..! साभार..!???
अति सुन्दर ग़ज़ल मधुसूदन जी.. शुभकामनाएं ? कृप्या मेरी कविता “कोरोना बनाम क्यूँ रोना”का अवलोकन करें और अपना बहुमूल्य वोट देकर अनुगृहित करें ??
धन्यवाद जी , कीर्ति की चाहत भले ही सबको होती होगी मुझे कदापि नहीं ,शौक के लिये कलम घिसाई करता हूँ।लिखता नहीं। लेखक बनने की तमन्ना ईषत मात्र भी नहीं। अपना प्रयास अवश्य करना चाहिये इसमे बुराई नही। मैने बोला न सोच अपनी अपनी …. बधाई एडवांस में आपको।। रहा सवाल मैं यहाँ क्यो हूँ..? तो अवश्य चिंतन करूँगा … सम्भव है अपनी प्रोफाइल रिमूव कर लूं। उचित मार्गदर्शन के लिये धन्यवाद।
मेरा उद्देश्य किसी भी तरह से आपकी भावना को ठेस पहुंचाना नहीं था, यदि कुछ बुरा लगा हो तो माफ़ कीजियेगा ??
चाह जब हद से बढ़ जाती है तो चाहत हो जाती है ,
चाहत जब हद से बढ़ जाती है तो जुनून बन जाती है ,
जुनून जब हद से बढ़ता है पागलपन बन जाता है ,
पागलपन जब हद से बढ़ता है तो अशांति पैदा होती है ,
अशांति जब हद से बढ़ती है तो हिंसा पैदा होती है ,
हिंसा जब हद से बढ़ती है तो अराजकता पैदा होती है ,
अराजकता जब हद से बढ़ती है विनाश उत्पन्न होता है ,
विनाश जब हद से बढ़ता है विध्वंस होता है ,
विध्वंस जब हद से बढ़ता है राष्ट्र का नाश होता है ,
धन्यवाद !
आदरणीय आत्मिक आभार।। प्रतिक्रिया के लिये।