मधुसूदन जी आपकी बेबाकी मन को भा गई । अच्छा लगा । आजकल हर जगह प्रतिस्पर्धा है , जोड़ तोड़ है ।
अपना हित साधने के लिए भांति भांति के उपाय किए जाते हैं ।उपायी आगे , अच्छे सच्चे पीछे । ये दुनिया है भाई। बहरहाल आप अच्छी रचनाओं को वोट करें। कुछ तो निष्पक्ष और अच्छा हो। बेबाक विचार हेतु बधाई।
अतिसुन्दर रचना, मधुसूदनजी।मेरी कविता ईश्वर पढ़ें और अच्छी लगे तो वोट करें ?
आत्मिक आभार प्रतिक्रिया के लिये आदरणीया।
पसन्द आई तो वोट अवश्य करूँगा।
कटु सत्य! अपने आप को श्रेष्ठ बनाने में ईश्वर की भक्ति एक पूजा वंदना है किन्तु अपने स्वार्थ को पाने के लिए देवी देवताओं का प्रर्दशन करते हुए लाभ उठाने का घृणित कार्य भी धड़ल्ले से करके अपने को उपासक दर्शाना! हमारी निकृष्टता की पराकाष्ठा है।
आत्मिक आभार प्रतिक्रिया के लिये आदरणीय।जी अवश्य
वाह वाह! बहुत सुन्दर कविता मधुसूदन जी..शुभकामनाएँ ?? मेरी रचना “कोरोना बनाम क्यों रोना” का भी अवलोकन करके अपना बहुमूल्य वोट देकर अनुगृहित करें ?
आत्मिक आभार प्रतिक्रिया के लिये आदरणीया । जी अवश्य
आपके वोट की प्रतीक्षा है ??
कटु यथार्थ की संदेशपूर्ण प्रस्तुति ।
मनुष्य की प्रकृति ही ऐसी है कि वो वोट का लोभ संवरण नहीं कर पाती। प्रतियोगिता का वातावरण उन्हें इस हेतु प्रेरित करता रहता है ।
धन्यवाद !
आत्मिक आभार प्रतिक्रिया के लिये आदरणीय
सुंदर यथार्थ चित्रण। बधाई।
आत्मिक आभार प्रतिक्रिया के लिये आदरणीय
बहुत सुंदर प्रस्तुति धन्यवाद आपका जी