पाप और पुण्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ।
किसी के जीवन यापन का स्त्रोत पाप का कारण नहीं बनता , क्योंकि उसे पता नहीं है कि वह जो कर रहा है वह दूसरे व्यक्ति की दृष्टि में उसे पाप करने की श्रेणी मे लाता है । अनजाने में किया गया कोई कृत्य जो जानबूझकर ना किया जावे किसी भी व्यक्ति को पाप की श्रेणी में नहीं लाता है।
पाप और पुण्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ।
किसी के जीवन यापन का स्त्रोत पाप का कारण नहीं बनता , क्योंकि उसे पता नहीं है कि वह जो कर रहा है वह दूसरे व्यक्ति की दृष्टि में उसे पाप करने की श्रेणी मे लाता है । अनजाने में किया गया कोई कृत्य जो जानबूझकर ना किया जावे किसी भी व्यक्ति को पाप की श्रेणी में नहीं लाता है।
धन्यवाद !