मध्यम वर्ग पर कटाक्षपूर्ण रचना के लिए बधाई, यह वर्तमान परिवेश में एक दम सही कहा गया है,यह वह मध्य वर्ग जो सामान्य किसान परिवार से निकल कर अपनी रोजी-रोटी कमाने घर से चला और शहरी मानसिकता का होकर रह गया, यह दैनिक उपयोग एवं उपभोग की वस्तुओं को खरीदते समय जो रकम खर्च करता उसे सीधे किसानों से जोड़ कर देखने लगा है, जबकि किसान ने तो औने पौने दामों पर बेच कर उस फसल को व्यापारियों को दे दिया था, और उसकी कीमत खरीदते समय भी उसी ने लगाई थी और बेचते हुए भी वही तय कर के बेच रहा है, यानिकि हींग लगे न फिटकरी और दाम चोखा का चोखा! शुभकामनाएं एवं स्नेह।
मध्यम वर्ग पर कटाक्षपूर्ण रचना के लिए बधाई, यह वर्तमान परिवेश में एक दम सही कहा गया है,यह वह मध्य वर्ग जो सामान्य किसान परिवार से निकल कर अपनी रोजी-रोटी कमाने घर से चला और शहरी मानसिकता का होकर रह गया, यह दैनिक उपयोग एवं उपभोग की वस्तुओं को खरीदते समय जो रकम खर्च करता उसे सीधे किसानों से जोड़ कर देखने लगा है, जबकि किसान ने तो औने पौने दामों पर बेच कर उस फसल को व्यापारियों को दे दिया था, और उसकी कीमत खरीदते समय भी उसी ने लगाई थी और बेचते हुए भी वही तय कर के बेच रहा है, यानिकि हींग लगे न फिटकरी और दाम चोखा का चोखा! शुभकामनाएं एवं स्नेह।
100% सत्य कह रहे सर ।
आपका अनुभव प्रायोगिक अनुभव है ।