अपेक्षाओं पर खरा न उतरने से प्रधानमंत्री जी व्यक्त की गई नाराजगी किसी हद तक जायज है किन्तु किसी से भी इतनी अपेक्षा नहीं करनी चाहिए जो बाद में तनाव का सबब बन जाए!सत्यता प्राप्ती के लिए किए गए वादों को तो वह पिछले कार्यकाल में ही तोड चुके थे फिर भी उन्हें दोबारा और अधिक शक्ति प्रदान करके अब उन्हें दोषी ठहराया जाना एक पक्षीय सोच होगी, किसी को भी हमें एक बार आजमा कर देख लें तो फिर उनकी खामियां देख परख कर मौका देना चाहिए! ऐसा ही मनमोहन सिंह जी के समय भी हुआ पहले कार्य काल में उन्होंने कितने ही वायदे पूरे नहीं किए फिर भी सत्ता सौंप दी!तब वह भी इसे अपनी काबिलियत मानकर गलत तरीके से आगे बढ़ गये और परिणाम अन्ना आंदोलन के रूप में सामने आया, अब किसान आन्दोलन के रूप में है, हमें सरकार पर दबाव बनाने के लिए अदला बदली करते रहना चाहिए जिससे निरंकुश शासन से बचा जा सके!!सत्ता का चरित्र ऐसा ही बना दिया गया है! कहीं कुछ अनुचित लगे तो क्षमा करें,स्नेह सहित सादर अभिवादन।
मजबूत विकल्प के अभाव ने मोदी को निरंकुश बना दिया है। कोई भी पार्टी या गठबंधन मजबूत विकल्प जब तक नहीं बनती/बनता तब तक स्थिति यही रहेगी।
विपक्षी पार्टियों को सत्ता में पद लोलुपता से हटकर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है , तभी कोई गठबंधन सार्थक विकल्प के रूप में खड़ा हो सकता है।
विपक्ष को ओछी राजनीति से हटकर कृत संकल्प होकर कार्य करना होगा , तभी कुछ संभव हो सकता है। अन्यथा हमें यही भोगने के लिए विवश होना पड़ेगा।
धन्यवाद !