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मनुष्य अपने अंतर्निहित संस्कारों एवं मूल्यों के आधार पर स्वाभाविक रूप से अच्छा या बुरा सिद्ध होता है।
कोई भी व्यक्ति बाहृय रूप से प्रयत्न करने पर भी अच्छा नहीं बन सकता है। यदि स्वाभाविक रूप से उसके चरित्र के अंतर्निहित गुणों में संस्कार एवं मूल्यों का अभाव होगा तो उसका अच्छा बनने का प्रयास एक कृत्रिम भाव के रूप में प्रकट होगा। जहां तक किसी व्यक्ति के अच्छे या बुरे होने का मूल्यांकन करने का प्रश्न है , यह मूल्यांकन करने वाले की प्रज्ञा शक्ति , पूर्वाग्रह , मान्यताओं , एवं अंतर्निहित संस्कार निर्मित भावनाओं एवं मूल्यों पर निर्भर करता है। अतः एक ही व्यक्ति का मूल्यांकन भिन्न-भिन्न किया जा सकता है और उनमें समरूपता नहीं रह सकती।
गुरु , माता पिता एवं साधु संत की भूमिका भी संस्कार जनक एवं परिस्थिति वश भिन्न भिन्न हो सकती है। जिनके विश्लेषण हेतु मापदंड विभिन्न हो सकते हैं।
आधुनिक समाज में परिवारों के बिखरते रूप से उत्पन्न संस्कार विहीनता एवं सामाजिक मूल्यों का ह्रास एवं व्यक्ति विशेष के मूल्यांकन के दोहरे मापदंड आकलन में होने वाली विसंगतियों के लिए दोषी है।
अतः वर्तमान में किसी व्यक्ति विशेष को अच्छा या बुरा सिद्ध कर नामित कर देना विवाद मुक्त निरापद प्रक्रिया नहीं है।

धन्यवाद !

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