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बहिश्त सी वादी क्यों खूँ में नहाई है, इंसानिय़त सिस़क रही या ख़ुदा तेरी दुहाई है, खौफ चारों ओर बरपा सहमा सहमा सा हर शख्स है , मौत के आग़ोश में नज़र आती है ज़िंदगी हर पल सख़्त है ,
श़ुक्रिया !
शुक्रिया सर
बहिश्त सी वादी क्यों खूँ में नहाई है,
इंसानिय़त सिस़क रही या ख़ुदा तेरी दुहाई है,
खौफ चारों ओर बरपा सहमा सहमा सा हर शख्स है ,
मौत के आग़ोश में नज़र आती है ज़िंदगी हर पल सख़्त है ,
श़ुक्रिया !
शुक्रिया सर