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बेहतरीन पेशकश !

आपसे मुतास़िर मेरा अंदाज़े बयां पेश है :

इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा ना हुआ ,
गैर तो गैर थे अपनों का सहारा ना हुआ ,
इस टूटे दिल की दास्तां किस तरह सुनाऊं ,
दिल टूटने का सब़ब किस क़दर बताऊं ,
ख्व़ाब जो हमने देखे थे ,वो सिर्फ ख्व़ाब होकर रह गए,
हमारी सब कोश़िशें नाकाम हुईं ,हम नस़ीब के मारे होकर रह गए ,
हमारे अपने अज़ीज़ भी कतरा के निकल गए ,
जिन्हे हम दोस्त समझते थे , वो भी अजनबी से बन गए ,
ज़िंदगी के चार दिन गम़े तऩ्हाई में गुज़र गए ,
बाक़ी ज़िंदगी के दिन दर्दो अलम़ से बिखर गए ,
अख़लाक के क़द्रदान और सलाहिय़त के हम म़ुरीद रहे ,
ज़माने के चलन से अन्जान हम इंसानी फ़ितरत से बेखबर रहे ,
सब़ाब और क़ुफ्र के फ़र्क को हम समझते रहे ,
स़ब्र का दामन थाम हम ज़िंदगी में आगे बढ़ते रहे ,

श़ुक्रिया !

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