Comments (3)
16 Oct 2020 08:16 PM
तिश़्नग़ी जम गई पत्थर तरह होठों पर ,
डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला ,
क्या भला मुझको परखने का नतीज़ा निकला ,
ज़ख्मे दिल आपकी नज़रों से भी गहरा निकला ,
कोई मिलता है तो अब अपना पता पूछता हूं ,
मैं तेरी खोज में खुद से भी परेजाँँ निकला ,
श़ुक्रिया !
PRABHA NIRALA
Author
17 Oct 2020 08:10 AM
शुक्रिया ?
बहुत सुंदर रचना है।महोदय मेरी रचना अमर प्रेम (सवैया) का अवलोकन कर एक वोट देकर सहयोग देने की कृपा करें , धन्यवाद। ।