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उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं , बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं , मुंतज़िर हैं दम-ए-रुख़्सत कि ये मर जाए तो जाएँ , फिर ये एहसान कि हम छोड़ के जाते भी नहीं ,
श़ुक्रिया !
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं ,
बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं ,
मुंतज़िर हैं दम-ए-रुख़्सत कि ये मर जाए तो जाएँ ,
फिर ये एहसान कि हम छोड़ के जाते भी नहीं ,
श़ुक्रिया !