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दिल के ग़ुबार उठते अटकते पर थमते नहीं , इज़हार- ए – जज़्बात अल्फ़ाज़ों में उभरते नहीं, इसी कशमकश में रहता हूं मैं , अपने शेरों में असर की कोशिश में लगा रहता हूं मैं ,
श़ुक्रिया !
दिल के ग़ुबार उठते अटकते पर थमते नहीं ,
इज़हार- ए – जज़्बात अल्फ़ाज़ों में उभरते नहीं,
इसी कशमकश में रहता हूं मैं ,
अपने शेरों में असर की कोशिश में लगा रहता हूं मैं ,
श़ुक्रिया !