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प्रिय मित्र डा ० आनन्द जी प्रणाम आपकी रचना धर्मिता को नमन मुझे ये रचना आपकी बहुत पसन्द आई |

तिश़नगी काय़म रही , कभी ख़त्म न हुई ,
डूब कर भी इश्क़ के दरिया से हम प्यासे निकले ,

श़ुक्रिया !

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