Comments (2)
12 Oct 2020 07:30 AM
तिश़नगी काय़म रही , कभी ख़त्म न हुई ,
डूब कर भी इश्क़ के दरिया से हम प्यासे निकले ,
श़ुक्रिया !
तिश़नगी काय़म रही , कभी ख़त्म न हुई ,
डूब कर भी इश्क़ के दरिया से हम प्यासे निकले ,
श़ुक्रिया !
प्रिय मित्र डा ० आनन्द जी प्रणाम आपकी रचना धर्मिता को नमन मुझे ये रचना आपकी बहुत पसन्द आई |