Comments (4)
14 Sep 2020 10:22 PM
बहुत बढ़िया आदरणीय
विनय कुमार करुणे
Author
14 Sep 2020 11:51 PM
धन्यवाद सर जी
तिश्ऩगी की जम गई है पत्थर की तरह होठों पर,
डूब कर भी तेरी दरिया से मैं प्यासा निकला,
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला,
ज़ख्मे दिल आपकी नजरों से भी गहरा निकला,
कोई मिलता है तो अब अपना पता पूछता हूं मैं,
मैं तेरी खोज में खुद से भी परेजाँँ निकला,
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला,
ज़ख्मे दिल आपकी नजरों से भी गहरा निकला,
सनम तुझे मैंने दरियादिल समझा तू तो संगेदिल निकला।
श़ुक्रिया !
आपके स्नेह के लिए सदा आभारी हूं