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1 Sep 2020 06:39 PM
वक्त के दिन और रात , वक्त के कल और आज।
वक्त की हर शै गुलाम , वक्त का हर शै पे है राज।
आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे ,
कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज़ ।
वक़्त की गर्दिश से है आती-जाती रौनकें,
वक्त है फूलों की सेज , वक्त है कांटों का ताज।
वक्त की ठोकर से है क्या हुकूमत क्या समाज।
वक्त के दिन और रात , वक्त के कल और आज।
श़ुक्रिया !
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
धन्यवाद !