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एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
कलम को तीखा बनाया और तब कागज पर चलाया
स्याही सूखी उसी पल भाव बिखरे कुछ लिख न पाया ||
शब्द शब्द सिंचन किया बैठ अकेला था भजन किया
फिर देख लेखनी शैलजा- कोमल मन आहत हुआ

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