Comments (5)
10 Aug 2020 08:37 AM
Bahut hi badiya
9 Aug 2020 07:55 PM
वक्त के दिन और रात , वक्त के कल और आज।
वक्त की हर शै गुलाम , वक्त का हर शै पे राज।
आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे ,
कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज़ ।
वक़्त की गर्दिश से है आती-जाती रौनकें,
वक्त है फूलों की सेज , वक्त है कांटों का ताज।
वक्त की ठोकर से है क्या हुकूमत क्या समाज।
वक्त के दिन और रात , वक्त के कल और आज।
श़ुक्रिया !
Prabhat Pandey
Author
9 Aug 2020 08:36 PM
Bahut sundar wakt ka prastutikaran aapke dwara kiya gaya..
Vr nice sir