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27 May 2021 12:36 AM

पहले भी इस रचना को पढ़ा..लेकिन शायद मैं गंभीरता से नहीं पढ़ा था. अब जब दुबारा पढ़ रहा हूं तो रचना को तो मैं बेहद ही शानदार पाता हूं. आप वास्तव में पूरी तरह से सुलझी हुई हैं और आप न केवल किसी देश, लिंग, जाति, धर्म बल्कि समूची मानवता को केंद्र में रखती हैं अपनी रचनाओं को लिखते वक्त..सादर नमन..

आभार????

5 Aug 2020 10:14 PM

Wow.

धन्यवाद ????

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